प्रेम नारायण यादव
(अवकाश प्राप्त विशेष सचिव, उत्तर प्रदेश शासन)
– संकल्प, सेवा और साहित्य-साधना के अप्रतिम साधक
शीघ्र प्रकाशित कृति: श्रीमद्भगवद्गीता – अमृतं महत
एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसमें शासन की दृढ़ता, संवेदना की कोमलता और साधना की निःशब्द शक्ति एकाकार हो जाती है।
श्री प्रेम नारायण यादव का नाम उन विरले व्यक्तित्वों में सम्मिलित है, जिन्होंने जीवन के हर चरण में आत्मानुशासन, सेवा और सृजन को समान महत्त्व देते हुए उसे जनकल्याण की दिशा में समर्पित किया। शासन-प्रशासन के शिखर पदों पर आसीन रहते हुए, आपने केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं लिए, बल्कि उन निर्णयों में संवेदनाओं की प्रतिध्वनि और मानवीय मूल्यों का आलोक भी प्रतिध्वनित किया।
उत्तर प्रदेश शासन में विशेष सचिव, उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के सचिव, तथा नागरिक परिषद जैसे महत्वपूर्ण निकायों में नेतृत्व की भूमिका निभाते हुए, श्री यादव ने अपने कर्मक्षेत्र को केवल दायित्व का निर्वहन नहीं, बल्कि सेवा और सुधार की साधना का माध्यम बनाया। शासनादेशों, अधिसूचनाओं और नीतिगत पहलों के माध्यम से आपने लाखों कर्मचारियों, नागरिकों और विद्यार्थियों के जीवन में स्थायी परिवर्तन की आधारशिला रखी।
सेवा से साधना तक: जीवन का रूपांतरण
दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त श्री यादव का बौद्धिक विकास केवल अकादमिक सीमाओं में नहीं रहा। उनकी दृष्टि सदैव व्यापक, बहुआयामी और गहराई से परिपूर्ण रही है। हिंदी, अंग्रेज़ी और संस्कृत भाषाओं में समान रूप से दक्ष होकर, आपने शिक्षाशास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र तथा भारतीय और पाश्चात्य दर्शन के गूढ़ तत्त्वों को आत्मसात किया है। यही कारण है कि आपकी रचनाओं में विचार केवल शब्दों के माध्यम से नहीं आते – वे एक साधक की आंतरिक अनुभूति के रूप में प्रकट होते हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद जब अधिकतर लोग विश्राम की ओर उन्मुख होते हैं, श्री यादव ने उस विराम को एक नए आरंभ का रूप दिया। उन्होंने आत्म-चिंतन को साहित्यिक अभिव्यक्ति में ढाला और लेखनी को अपने अनुभवों, विचारों और साधना का माध्यम बनाया।
कविता में आत्मा की प्रतिध्वनि: अनुभूति से उत्पन्न सृजन
श्री यादव की दो प्रमुख काव्य कृतियाँ – "ख्यालगंज नखलऊं" और "इसलिए गीत गाता हूँ मैं" – उनके रचनात्मक जीवन की मील का पत्थर हैं। ये केवल कविताएँ नहीं हैं, ये आत्मा की प्रतिध्वनि हैं – जीवन की विविध छवियों, भावनाओं और विचारों की जीवंत प्रस्तुति। इन रचनाओं में प्रेम, समाज, प्रकृति, आत्मबोध और भक्ति जैसे विषय केवल चित्रित नहीं होते, बल्कि पाठक के हृदय में स्पंदित होने लगते हैं।
आपकी कविताओं की सबसे विशेष बात यह है कि उनमें शब्दों की सजावट नहीं, बल्कि जीवन का आत्मिक आलोक होता है। ये रचनाएँ पाठक को केवल आनंद नहीं देतीं, बल्कि उसे भीतर तक झकझोरती हैं और चेतना के एक उच्च स्तर तक ले जाती हैं।
शीघ्र प्रकाशित कृति: "श्रीमद्भगवद्गीता – अमृतं महत"
आपकी नवीनतम कृति "श्रीमद्भगवद्गीता – अमृतं महत" एक साधक की आत्म-यात्रा का अद्वितीय दस्तावेज़ है। यह केवल भाष्य नहीं, न ही मात्र एक अनुवाद – यह एक आंतरिक संवाद है, एक साधना है, और गीता के अमृत तत्वों को आमजन के लिए सहज, सरल और सरस भाषा में प्रस्तुत करने का उत्कृष्ट प्रयास है। इस ग्रंथ में अर्जुन के प्रश्नों के उत्तर केवल युद्धभूमि तक सीमित नहीं रहते, वे आज के मानव की जिज्ञासाओं, संघर्षों और मानसिक द्वंद्वों का समाधान भी प्रस्तुत करते हैं।
यह कृति गीता के उस शाश्वत दर्शन को नूतन भाषा में प्रस्तुत करती है, जिसमें अध्यात्म केवल मोक्ष का पथ नहीं, बल्कि कर्म, निर्णय और जीवन की दिशा का आलोक भी है।
प्रेरणादायी व्यक्तित्व: जीवन की जीती-जागती पुस्तक
श्री यादव ने यह सिद्ध कर दिया है कि सेवानिवृत्ति, जीवन का अंत नहीं – एक नवीन आरंभ हो सकता है। दृढ़ संकल्प, स्पष्ट उद्देश्य और आत्म-प्रेरणा से कोई भी जीवन-संध्या सृजन-प्रभात में परिवर्तित हो सकती है। आपकी जीवनयात्रा उस शक्ति की प्रतीक है जो एक व्यक्ति को कर्मयोगी, विचारक और सर्जक – तीनों रूपों में प्रकाशित करती है।
आप केवल एक पूर्व प्रशासनिक अधिकारी नहीं हैं, और न ही केवल एक साहित्यकार – आप एक ऐसी जीवंत ऊर्जा हैं जो अनुभव और अभिव्यक्ति, नीति और नैतिकता, प्रशासन और अध्यात्म को एक सूत्र में पिरोती है।
शब्दों में समग्र जीवन की झलक
श्री यादव का जीवन एक ऐसी मौन साधना है, जिसमें कलम केवल विचारों की वाहक नहीं, बल्कि एक योगी की तपस्या का परिणाम बन जाती है। उनकी लेखनी में सौंदर्य है, सच्चाई है और सबसे बढ़कर – सार्थकता है। उनकी रचनाएँ केवल पढ़ी नहीं जातीं, वे आत्मा में उतरती हैं, सोच बदलती हैं और दिशा देती हैं।
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