शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025

POLITICS

 2027 में उत्तर प्रदेश की सत्ता: 

सपा में बसपा नेताओं की एंट्री से बदलता समीकरण

उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर तेजी से करवट ले रही है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का जनाधार लगातार कमजोर होता जा रहा है, और इसके अधिकांश प्रमुख नेता समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल हो चुके हैं। यह घटनाक्रम 2027 के विधानसभा चुनावों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे प्रदेश की राजनीति का जातिगत समीकरण बदलता हुआ दिखाई दे रहा है।


बसपा का पतन और सपा का उभार: बदलता सामाजिक गठबंधन

बहुजन समाज पार्टी का गठन दलितों को राजनीतिक मंच देने के उद्देश्य से हुआ था। कांशीराम और मायावती के नेतृत्व में पार्टी ने 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर इतिहास रचा। लेकिन हाल के वर्षों में बसपा का संगठन कमजोर हुआ है और ज़मीनी जनाधार तेजी से खिसक रहा है।अब जब बसपा के बड़े नेता—जैसे  आरके चौधरी, राम जी लाल सुमन जैसे दिग्गज बसपाई नेता सपा में शामिल हो चुके हैं, तो सपा का सामाजिक आधार सिर्फ यादव और मुस्लिम तक सीमित नहीं रह गया है। दलितों का एक बड़ा वर्ग अब सपा की तरफ झुकाव दिखा रहा है।

जातिगत समीकरण: 2027 में कौन किसके साथ ?

उत्तर प्रदेश की राजनीति जातीय गणित पर टिकी होती है। यहां प्रमुख समुदाय और उनके राजनैतिक झुकाव कुछ इस प्रकार हैं:

सपा का नया सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला:

अब सपा केवल यादव–मुस्लिम पार्टी नहीं रही। वह खुद को “PDA” –पिछड़ा दलित, अल्पसंख्यक (मुस्लिम) – गठबंधन के रूप में प्रस्तुत कर रही है। अखिलेश यादव ने गैर-यादव OBC नेताओं को भी पार्टी में समाहित करना शुरू कर दिया है। यह गठबंधन भाजपा के उस सोशल इंजीनियरिंग मॉडल को चुनौती दे सकता है जिसने उसे 2017 और 2022 में ऐतिहासिक जीत दिलाई थी।

भाजपा की रणनीति: ‘सबका साथ, पर सवर्ण-ओबीसी पकड़ मजबूत’

भाजपा ने पिछले चुनावों में गैर-यादव ओबीसी और दलितों को अपने साथ लाने में सफलता पाई थी। राम मंदिर, कानून-व्यवस्था, राष्ट्रवाद और मुफ्त राशन जैसी योजनाओं ने उसे जनसमर्थन दिलाया।

2027 में भाजपा का दांव होगा:

योगी आदित्यनाथ का नेतृत्व: ठोस प्रशासन और हिंदुत्व की छवि

केंद्र सरकार की योजनाएं: गरीबों और किसानों पर ध्यान

जातीय संतुलन: लोधी, कुर्मी, निषाद, मौर्य जैसी जातियों को साधने की कोशिश

लेकिन यदि सपा PDA गठबंधन के साथ मजबूत तरीके से उभरती है, तो भाजपा को नुकसान हो सकता है।

अल्पसंख्यक (मुस्लिम) फैक्टर

मुस्लिम वोट अब लगभग एकमुश्त सपा के पाले में आ चुका है। 2022 में भी मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण सपा के पक्ष में हुआ था, लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले के चलते फायदा भाजपा को मिला।

अगर 2027 में बसपा पूरी तरह अप्रासंगिक हो गई और कांग्रेस भी कमजोर रही, तो मुस्लिम वोट 90% से ज्यादा सपा को जा सकते हैं।

उत्तर प्रदेश

2027 में कौन होगा सत्ता में?संभावित परिदृश्य



1. सपा गठबंधन की सरकार (सबसे संभावित परिदृश्य):

अगर “PDA” –पिछड़ा दलित, अल्पसंख्यक (मुस्लिम) गठबंधन जमीन पर सक्रिय रहा और बसपा पूरी तरह हाशिये पर रही, तो सपा आसानी से 200+ सीटें जीत सकती है।

2. भाजपा की वापसी (संभावना मध्यम):

यदि योगी सरकार भ्रष्टाचार, रोजगार या जातीय नाराजगी को नियंत्रित कर लेती है, तो भाजपा वापसी कर सकती है।

3. त्रिशंकु विधानसभा:

यदि कांग्रेस और बसपा कुछ सीटें ले आती हैं, तो त्रिकोणीय लड़ाई हो सकती है और किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिले।

2027 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जाति और सामाजिक समीकरणों की नई परिभाषा तय करेगा। समाजवादी पार्टी का “PDA” –पिछड़ा दलित, अल्पसंख्यक (मुस्लिम) गठबंधन अगर संगठित और सक्रिय रहा, तो यह भाजपा के सवर्ण–ओबीसी–हिंदुत्व गठबंधन को चुनौती दे सकता है।

2027 का उत्तर प्रदेश विधानसभा सिर्फ नेता बनाम नेता नहीं, बल्कि गठबंधन बनाम गठबंधन होगा — और जो बेहतर सामाजिक समीकरण बना लेगा, वह यूपी की सत्ता पर राज करेगा।


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