पृथ्वी के नीचे छिपी एक और दुनिया:
वैज्ञानिकों ने आंतरिक कोर में खोजा नया रहस्य
लखनऊ: 14अप्रैल 2025 — हमारी पृथ्वी के केंद्र में छिपे एक गहरे और रहस्यमय संसार का खुलासा हुआ है। वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाली खोज करते हुए पाया है कि पृथ्वी का आंतरिक कोर, जिसे अब तक एक ठोस और एकरूप परत माना जाता था, वास्तव में दो अलग-अलग परतों से बना हो सकता है। यह खोज भूगर्भ विज्ञान की परंपरागत समझ को चुनौती देती है और पृथ्वी की उत्पत्ति तथा विकास से जुड़े कई नए सवालों को जन्म देती है।
क्या है यह नई खोज ?
पारंपरिक रूप से पृथ्वी की रचना चार मुख्य परतों में मानी जाती है — क्रस्ट (भूपर्पटी), मैंटल (मेसोपर्पटी), आउटर कोर (बाहरी कोर) और इनर कोर (आंतरिक कोर)। आंतरिक कोर को अब तक एक ठोस, लोहे और निकेल से बनी परत के रूप में जाना जाता था जो अत्यधिक तापमान और दबाव के बावजूद ठोस बनी रहती है। परंतु अब वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि आंतरिक कोर की संरचना और भी जटिल है — यह दो विभिन्न परतों से मिलकर बनी हो सकती है।
इस खोज के लिए वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक एल्गोरिद्म का उपयोग कर हजारों संभावित संरचनात्मक मॉडलों की तुलना की। इन मॉडलों की तुलना पृथ्वी के अंदर से गुजरने वाली भूकंपीय तरंगों (सीस्मिक वेव्स) के यात्रा समय के साथ की गई। तरंगों की गति और दिशा में अंतर देखकर यह अनुमान लगाया गया कि आंतरिक कोर एकसमान नहीं है, बल्कि उसमें दिशा के अनुसार गति में परिवर्तन (anisotropy) पाया जाता है। यही अंतर यह संकेत देता है कि कोर की आंतरिक संरचना में कुछ छिपा हुआ है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह खोज ?
पृथ्वी का आंतरिक कोर ग्रह के कुल आयतन का केवल 1% हिस्सा ही है, लेकिन इसका वैज्ञानिक महत्व अत्यधिक है। यह कोर अत्यधिक गर्म होता है — इसका तापमान 5,000 डिग्री सेल्सियस (9,000 डिग्री फारेनहाइट) से अधिक होता है। इतने उच्च तापमान और दबाव में भी इसमें ठोस लोहा मौजूद है, जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
नई खोज से यह संकेत मिलते हैं कि आंतरिक कोर में लोहे की संरचना या क्रिस्टल व्यवस्था में परिवर्तन हुए हैं, जो संभवतः पृथ्वी के इतिहास में दो अलग-अलग शीतलन घटनाओं के कारण उत्पन्न हुए होंगे। इससे संकेत मिलता है कि पृथ्वी का कोर एक बार नहीं, बल्कि दो बार ठंडा हुआ होगा — प्रत्येक बार अलग तरीके से और अलग प्रभावों के साथ।
वैज्ञानिक क्या कहते हैं ?
ऑस्ट्रेलिया की कैनबरा स्थित ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (ANU) के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया। उन्होंने बताया कि यह "गुप्त कोर" (hidden inner core) हमारे ग्रह की प्रारंभिक अवस्था और उसके विकास को समझने की कुंजी हो सकता है। टीम के अनुसार, कोर की दोहरी परत यह दर्शाती है कि पृथ्वी के इतिहास में कोई प्रमुख बदलाव या संक्रमण हुआ था, जिससे इसके भीतरी ढांचे पर असर पड़ा।
डॉ. ह्र्वोए टकाल्जिक, जो इस शोध के प्रमुख वैज्ञानिक हैं, कहते हैं, “हमने हमेशा सोचा कि आंतरिक कोर एक ही तरह का है, लेकिन अब हमें लगता है कि उसके अंदर भी एक और आंतरिक कोर है। यह हमें पृथ्वी की प्रारंभिक अवस्था और आंतरिक विकास के बारे में और अधिक जानकारी देगा।”
पृथ्वी के अतीत की झलक
यह नई खोज न केवल भूगर्भ विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास की कई परतें खुल सकती हैं। यदि कोर में दो परतें हैं, तो यह संकेत हो सकता है कि पृथ्वी की आंतरिक संरचना समय के साथ धीरे-धीरे बदली है — जैसे-जैसे यह ठंडी होती गई, लोहे की संरचना भी बदलती गई। इससे यह भी पता चलता है कि पृथ्वी की चुंबकीय प्रणाली कैसे विकसित हुई और आज तक कैसे बनी हुई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पृथ्वी के आंतरिक कोर में जो परिवर्तन हुए, वे शायद ग्रह के टेक्टोनिक प्लेट्स की गतिविधियों, ज्वालामुखी विस्फोटों और चुंबकीय क्षेत्र में आए बदलावों से भी जुड़े हो सकते हैं।
आगे का रास्ता
इस खोज के बाद अब भूगर्भ वैज्ञानिकों के सामने एक नई चुनौती है — इस नई जानकारी को मौजूदा पृथ्वी मॉडल में समाहित करना और इसके जरिए पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक इतिहास को और अधिक विस्तार से समझना। साथ ही, यह खोज ब्रह्मांड में अन्य ग्रहों की संरचना को समझने में भी मदद कर सकती है।
पृथ्वी के कोर की गहराई तक सीधे पहुंचना तकनीकी रूप से असंभव है, इसलिए वैज्ञानिकों को भूकंपीय तरंगों का सहारा लेना पड़ता है। ऐसे में डेटा मॉडलिंग, AI और मशीन लर्निंग जैसे उपकरणों की मदद से भविष्य में और भी गहराई से जानकारी मिल सकती है।
यह नई वैज्ञानिक खोज पृथ्वी की सबसे गूढ़ परत — आंतरिक कोर — के बारे में हमारी समझ को बदल रही है। दोहरी परतों की उपस्थिति न केवल इस बात की ओर संकेत करती है कि पृथ्वी का इतिहास बेहद जटिल रहा है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि अब भी हमारे ग्रह के भीतर ऐसे रहस्य छिपे हैं जिन्हें विज्ञान अभी तक पूरी तरह से उजागर नहीं कर पाया है।
भविष्य में इस दिशा में और शोध किए जाएंगे, जिससे न केवल पृथ्वी की रचना को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा, बल्कि यह भी जाना जा सकेगा कि कैसे हमारे ग्रह का यह धधकता हुआ दिल हमें जीवन देने वाले चुंबकीय क्षेत्र को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है।
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