उत्तर भारत में वट सावित्री पूजा की धूम: सुहागन महिलाएं बरगद के वृक्ष के नीचे कर रही हैं अखंड सौभाग्य की कामना
लखनऊ / वाराणसी / पटना / दिल्ली / जयपुर / चंडीगढ़ (संयुक्त रिपोर्ट)
आज उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में वट सावित्री पूजा की पवित्र धूम देखने को मिली। सुहागन महिलाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर सुबह-सुबह वट वृक्ष (बरगद) की पूजा की और अपने पति की लंबी उम्र व सुखी वैवाहिक जीवन की कामना की। यह पर्व विशेषकर विवाहित महिलाओं द्वारा श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।
पूजा का आध्यात्मिक महत्व
वट सावित्री पूजा में महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा कर सावित्री की पौराणिक कथा को स्मरण करती हैं। मान्यता है कि सावित्री ने बरगद के नीचे बैठकर यमराज से अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस मांगे थे और अपनी तपस्या से उन्हें पुनर्जीवित कर दिया था। इसी परंपरा को जीवित रखते हुए महिलाएं आज भी इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
पूजा की विधि और रीतियां
सुबह से ही महिलाओं में पूजा को लेकर उत्साह देखने को मिला। व्रति महिलाएं पूजा की थाली में जल, रोली, चावल, फल, मिठाई और धागा लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंचीं। उन्होंने व्रत का संकल्प लिया, पेड़ की सात बार या 108 बार परिक्रमा की और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनी। पूजा के बाद महिलाएं अपनी सास और बुजुर्ग महिलाओं का आशीर्वाद लेती हैं।
नहीं मिला वट वृक्ष तो किया प्रतीकात्मक पूजन
जहां बरगद का पेड़ उपलब्ध नहीं था, वहां महिलाओं ने गमले में लगे पौधे या किसी अन्य पेड़ को वट वृक्ष मानकर पूजा की। कई मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों पर वट वृक्ष की पूजा के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गईं थीं।
आस्था का उमड़ा सैलाब
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट, लखनऊ के गोमती किनारे, पटना के गांधी मैदान, दिल्ली के यमुना तट, जयपुर के आमेर क्षेत्र और चंडीगढ़ के सिटी पार्कों में बड़ी संख्या में महिलाएं व्रत करती नजर आईं। मंदिरों में भी कथा आयोजन हुआ, जहाँ श्रद्धालु महिलाओं ने सामूहिक रूप से पूजा की।
नारी शक्ति की धार्मिक अभिव्यक्ति
वट सावित्री व्रत न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में नारी की शक्ति, प्रेम और संकल्प का प्रतीक भी है। इस दिन को सुहागन महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के रूप में देखती हैं lउत्तर भारत में वट सावित्री पूजा एक समृद्ध परंपरा बन चुकी है। यह पर्व भारतीय समाज में विवाह संस्था की स्थिरता और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा का प्रतीक है। सावित्री की तरह दृढ़संकल्प और श्रद्धा से भरपूर महिलाएं हर साल इस दिन अपने पति की लंबी आयु की प्रार्थना करती हैं, और आस्था के इस पर्व को पूरी निष्ठा से निभाती हैं।
रिपोर्ट: जन प्रतिनिधि ब्यूरो
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