फ़िल्म समीक्षा:
"मालिक" — एक और दृष्टिकोण
समीक्षक: ज्योतिर्मय यादव
🧩 कहानी का गूढ़ संसार
राजकुमार राव अभिनीत "मालिक" एक साधारण युवक के असाधारण अपराधी बनने की त्रासदी है। फिल्म की कहानी उत्तर भारत के एक काल्पनिक शहर में शुरू होती है, जहाँ एक सीधे-सादे युवक का जीवन परिस्थितियों और व्यवस्था की सड़न के बीच धीरे-धीरे अंधेरे की ओर धकेला जाता है। वह पहले माफिया की गोद में बैठता है, फिर धीरे-धीरे राजनीति के मंच पर चढ़ाई करता है — लेकिन उसकी आत्मा हर मोड़ पर और अधिक खोखली होती जाती है।यह फिल्म केवल अपराध नहीं, बल्कि नैतिक पतन, सत्ता की भूख और इंसान के भीतर पनपती 'मालिक' बनने की लालसा की पड़ताल करती है।
🎥 निर्देशन: यथार्थ और शैली का संतुलन
पुलकित का निर्देशन "मालिक" में उनकी अब तक की सबसे ठोस और नियंत्रित कृति बनकर उभरता है। उन्होंने एक कच्ची, खुरदरी कहानी को ग्लैमर से भरने की कोशिश नहीं की — बल्कि उसकी नब्ज को पकड़ते हुए उसे कड़वे यथार्थ के साथ प्रस्तुत किया है।कैरेक्टर डेवलपमेंट के दृश्यों में वो धीमी गति से कहानी को उबालते हैं, और क्लाइमैक्स में आकर वो सब उफान मारता है। कुछ दर्शकों को यह गति धीमी लग सकती है, लेकिन यह निर्देशक की सचेत शैली है — जो किरदार के गिरने और चढ़ने की प्रक्रिया को महसूस कराना चाहती है।
🎬 छायांकन (Cinematography): हर फ्रेम एक दस्तावेज़
अनुज राकेश धवन का कैमरा "मालिक" में केवल दृश्य नहीं रचता — वह समय, वातावरण और मानसिकता का दस्तावेज़ बनाता है। पुराने शहर की संकरी गलियों से लेकर जेल की अंधेरी कोठरियों तक, हर फ्रेम में एक गंध है — कभी डर की, कभी सत्ता की, और कभी धोखे की।
विशेष रूप से इंटरवल से ठीक पहले की हाथी घाट शूटआउट सीक्वेंस तकनीकी रूप से बहुत ही कुशल और सिनेमाई रूप से शानदार है।
🎭 राजकुमार राव की अदाकारी:
राजकुमार राव इस किरदार में घुल गए हैं। उनके अभिनय में धीरे-धीरे आता हुआ अंधकार, आंखों में पलता भय और संवादों की तीव्रता – यह सब दर्शक को उनके भीतर झाँकने के लिए मजबूर कर देता है।
एक दृश्य में जब वह अपने ही पुराने मित्र को सियासी कारणों से खत्म करने का आदेश देते हैं, उनके चेहरे पर एक सूखी संवेदना है — जो बताती है कि ‘मालिक’ बनते समय आदमी, इंसान नहीं रह जाता।
यह भूमिका उन्हें ओमेर्टा और शाहिद जैसी फिल्मों की पंक्ति में एक और मील का पत्थर देती है।
🎵 संगीत और पृष्ठभूमि स्कोर: कहानी का नाभि केंद्र
सचिन-जिगर का संगीत इस बार अलग है — कम ‘चार्टबस्टर’, ज़्यादा ‘चरित्रबस्टर’। गाने कहानी के साथ बहते हैं, उनके खिलाफ नहीं।
“Naamumkin” – एक भावनात्मक प्रेरणा गीत है जो नायक के भ्रमित संकल्प को दर्शाता है।
“Aag Ka Dariya” – एक सूफियाना रैप जो फिल्म के अंत में उसकी आत्मा की विदीर्ण अवस्था को उजागर करता है।
बैकग्राउंड स्कोर धीमा, गहरा और भारी है – जैसे कोई दबा हुआ डर।
⚖ कुल मिलाकर: एक राजनीतिक अपराध गाथा जो देर तक आपके भीतर गूंजती है
"मालिक" कोई हल्की-फुल्की मसाला फिल्म नहीं है। यह एक भावनात्मक, नैतिक और राजनीतिक रूप से गहरी फिल्म है, जो अपने दर्शकों से समय और धैर्य मांगती है — और बदले में उन्हें विचार और उत्तेजना देती है।
🌟 रेटिंग: 4/5
🎭 अभिनय: ★★★★★
🎬 निर्देशन: ★★★★☆
🎥 छायांकन: ★★★★★
🎵 संगीत: ★★★★☆
📜 कहानी और पटकथा: ★★★★☆
यदि आप सिनेमाघर जाकर एक ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं जो केवल आपको मनोरंजन न दे, बल्कि कुछ सोचने पर भी मजबूर करे — तो ‘मालिक’ आपके लिए है।
– ज्योतिर्मय यादव
(“सिनेमा केवल आईना नहीं, एक चेतावनी भी है।”)