विशेष रिपोर्ट
फैशन का बदलता चेहरा:
आत्म-अभिव्यक्ति से लेकर ‘सस्टेनेबिलिटी’ तक
फैशन अब महज़ कपड़ों का चयन नहीं, बल्कि एक सामाजिक वक्तव्य बन चुका है। जहाँ पहले फैशन परिभाषित किया जाता था—डिज़ाइनर्स द्वारा, ब्रांड्स द्वारा, और कभी-कभी फिल्मों द्वारा—वहीं अब फैशन का मूल केंद्र वह व्यक्ति बन गया है जो उसे पहनता है। उसकी पसंद, उसका दृष्टिकोण, उसका राजनीतिक मत, यहाँ तक कि उसका पर्यावरण के प्रति रवैया भी—अब फैशन की भाषा में दर्ज हो रहा है।
जब ट्रेंड्स नहीं, विचार तय करते हैं फैशन
2020 के बाद की दुनिया में, फैशन उद्योग को कई झटके और कई नई दिशाएं एक साथ मिलीं। महामारी के दौरान जब लोगों ने पहली बार आराम, कार्यक्षमता और टिकाऊपन को तवज्जो देना शुरू किया, वहीं उसके बाद की दुनिया में आत्म-अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत पहचान ने फैशन की धारा को नई दिशा दी।
आज कोई भी ट्रेंड तब तक ट्रेंड नहीं कहलाता, जब तक वह लोगों की वास्तविक जीवन शैली, उनके मूल्यों और उनके सामाजिक सरोकारों को प्रतिबिंबित न करता हो।
सस्टेनेबल फैशन: स्टाइल में ज़िम्मेदारी
जहां पहले सीजन के हिसाब से रंगों का चलन बदलता था—जैसे गर्मियों में पेस्टल, सर्दियों में डार्क शेड्स—अब वह दीवार टूट चुकी है। ‘कन्ट्रास्टिंग पॉप कलर्स’, ‘मोनोक्रोम लुक’, और ‘कलर ब्लॉक्स’ जैसे ट्रेंड्स ने पारंपरिक सीमाओं को चुनौती दी है।बदलते मौसम, ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण के विरुद्ध बढ़ती जागरूकता ने फैशन की नींव को हिला दिया है। फैशन उद्योग, जो कभी दुनिया के सबसे प्रदूषणकारी उद्योगों में गिना जाता था, अब धीरे-धीरे टिकाऊ और नैतिक उत्पादन की ओर बढ़ रहा है।
भारत में भी खादी, हैंडलूम, बांस से बने वस्त्र, प्राकृतिक रंगों से रंगे हुए कपड़े और 'अपसायकल्ड फैशन' ने चलन पकड़ लिया है। कई उभरते ब्रांड अब कपड़ों के साथ 'ग्रीन टैग' भी दे रहे हैं—जिससे उपभोक्ता यह जान सकें कि यह परिधान किस हद तक पर्यावरण के अनुकूल है।
डिजाइनर रिद्धिमा गुप्ता बताती हैं, "अब स्टाइलिश दिखने के लिए पर्यावरण से समझौता करना ज़रूरी नहीं। असली स्टाइल वहीं है, जहाँ सोच भी सुंदर हो।"
'थ्रिफ्ट' और 'रीयूज़': अलमारी में क्रांति
एक समय था जब पुराने कपड़े पहनना 'मजबूरी' मानी जाती थी। आज वही 'थ्रिफ्ट फैशन' युवाओं के बीच नया चलन बन चुका है। सोशल मीडिया पर थ्रिफ्ट स्टोर्स की बाढ़ आई है—जहाँ दूसरे हाथ के कपड़े न केवल सस्ते होते हैं, बल्कि स्टाइल में भी विशिष्ट और अनूठे होते हैं।
साथ ही, फैब्रिक के चयन में भी विविधता आ रही है—नेचुरल लिनन, ऑर्गेनिक डेनिम, सिल्क ब्लेंड्स और क्रॉप्ड कॉटन से लेकर ‘विगन लेदर’ तक सब कुछ प्रयोग में लाया जा रहा है।
दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा मानसी कहती हैं, "थ्रिफ्टिंग सिर्फ पैसा बचाना नहीं है, ये स्टाइल में स्टेटमेंट देना है कि मैं जिम्मेदार उपभोक्ता हूँ।"
फैशन की भाषा अब जेंडर से परे
पुरुषों के लिए पैंट और महिलाओं के लिए स्कर्ट—यह परिभाषा अब अतीत की चीज़ बनती जा रही है। ‘जेंडर न्यूट्रल’ या ‘जेंडर फ्लुइड’ फैशन में अब पुरुष स्कर्ट पहन रहे हैं, महिलाएं बूट्स और टाई में रैम्प वॉक कर रही हैं, और कई ब्रांड अब ‘यूनीसेक्स’ लाइन ही लॉन्च कर रहे हैं।
'यूनीसेक्स' या 'जेंडर-फ्लुइड' कपड़े युवाओं में बेहद लोकप्रिय हो रहे हैं। स्कर्ट पहनने वाले पुरुष, पैंटसूट पहनने वाली महिलाएं, और उन दोनों के बीच की तमाम पहचानें—अब फैशन में अपने लिए जगह बना चुकी हैं।
यह परिवर्तन केवल पहनावे का नहीं, मानसिकता का है। यह समाज को यह बताने का तरीका बन गया है कि किसी की पहचान उसके कपड़े तय नहीं करते—बल्कि उसकी सोच करती है।
डिजिटल फैशन: जब रैम्प वर्चुअल हो जाए
मेटावर्स, एआई और डिजिटल अवतारों की दुनिया ने फैशन को एक नई आभासी परत दी है। आज बड़े फैशन ब्रांड्स 'डिजिटल कलेक्शन' लॉन्च कर रहे हैं जो असल दुनिया में नहीं, बल्कि सोशल मीडिया प्रोफाइल्स, गेम्स और वर्चुअल मीटिंग्स में 'पहनने' के लिए बनाए जाते हैं।
मेटावर्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में ‘डिजिटल फैशन’ एक नया आयाम बनकर उभरा है। अब फैशन ब्रांड्स वर्चुअल गारमेंट्स बेच रहे हैं, जो केवल आपकी ऑनलाइन प्रोफाइल्स पर दिखाए जाते हैं। अवतार्स के लिए डिजाइन किए गए कपड़े, गेमिंग फैशन, और NFT ड्रिवन डिज़ाइन—यह सब अब हकीकत है।
हाल ही में मुंबई में हुए एक फैशन टेक्नोलॉजी एक्सपो में डिजिटल फैशन शो आयोजित किया गया, जिसमें मॉडल्स नहीं, अवतार्स ने रैंप वॉक किया।
भारत में भी कई डिज़ाइन हाउसेज़ अब डिजिटल फैशन की संभावनाओं पर काम कर रहे हैं। चेन्नई स्थित फैशन टेक स्टार्टअप PixelSaree अपने ग्राहकों को NFT फैशन की पेशकश कर रहा है, जहाँ वे विशिष्ट डिज़ाइन को ऑनलाइन ही ‘पहन’ सकते हैं।
देसी का ग्लोबल होना: रिवाज से रैम्प तक
भारत का पारंपरिक वस्त्र आज दुनिया भर के डिज़ाइनरों को प्रेरणा दे रहा है। चंदेरी, बनारसी, कांचीवरम, पाटन पटोला—ये सब अब केवल त्योहारों या शादियों तक सीमित नहीं। नई पीढ़ी इन्हें वेस्टर्न सिलुएट्स के साथ फ्यूज़ करके ऑफिस, कैजुअल और पार्टी वियर बना रही है।
यह देसी फैशन का नया पुनर्जागरण है, जहाँ परंपरा को आधुनिकता की ज़ुबान दी जा रही है।
सोशल मीडिया: आज की रैम्प
फैशन अब पेरिस और मिलान के रैम्प पर नहीं तय होता—बल्कि इंस्टाग्राम, यूट्यूब और रील्स पर तय होता है। छोटे शहरों के युवा, बिना किसी फैशन स्कूल गए, बिना किसी डिजाइनर के सहारे, अब खुद को ‘फैशन इन्फ्लुएंसर’ के रूप में स्थापित कर रहे हैं।मेटावर्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में ‘डिजिटल फैशन’ एक नया आयाम बनकर उभरा है।
अब फैशन ब्रांड्स वर्चुअल गारमेंट्स बेच रहे हैं, जो केवल आपकी ऑनलाइन प्रोफाइल्स पर दिखाए जाते हैं। अवतार्स के लिए डिजाइन किए गए कपड़े, गेमिंग फैशन, और NFT ड्रिवन डिज़ाइन—यह सब अब हकीकत है।
हाल ही में मुंबई में हुए एक फैशन टेक्नोलॉजी एक्सपो में डिजिटल फैशन शो आयोजित किया गया, जिसमें मॉडल्स नहीं, अवतार्स ने रैंप वॉक किया।
प्रयागराज के 19 वर्षीय आयुष, जिनके फैशन वीडियो पर लाखों व्यूज़ आते हैं, कहते हैं, "मुझे बस अपने स्टाइल से प्यार है। लोग उसे पसंद कर रहे हैं, और अब ब्रांड्स भी।"
फैशन अब सिर्फ ‘फैशन’ नहीं है
आज का फैशन एक आंदोलन है—जहाँ व्यक्ति अपने मूल्यों, पहचान और दृष्टिकोण को पहनावे के ज़रिए बयां करता है। यह बदलाव सिर्फ़ बाहरी नहीं, भीतरी है। अब कपड़े न केवल शरीर ढँकते हैं, वे सोच जाहिर करते हैं।
फैशन का वर्तमान युग एक दर्पण है—जो हमारी सोच, हमारी जिम्मेदारी, और हमारे सामाजिक बदलाव को दिखा रहा है। यह सिर्फ पहनावे का मामला नहीं, यह विचारों का मंच बन चुका है।
जहाँ कपड़ों में अब रफ्तार से ज़्यादा आत्मा की तलाश हो रही है, वहीं यह भी साफ है कि फैशन का भविष्य केवल ट्रेंड्स में नहीं—ट्रांसफॉर्मेशन में छिपा है।
सवाल यह नहीं है कि कौन क्या पहनता है। सवाल यह है कि वह क्यों पहनता है।
और शायद, यही आज के फैशन की सबसे बड़ी ताक़त है।
– AI REPORTR (FASHION CORRESPONDENT)
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