मक्के के ठूंठ से निकलेगी चीनी: वैज्ञानिकों ने विकसित की नई तकनीक, खर्च होगा कम और बचेगा पर्यावरण
— वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी (WSU) के वैज्ञानिकोंकी बड़ी खोज
कृषि अवशेषों से ऊर्जा प्राप्त करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए, वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी (WSU) के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है जिससे मक्के के पौधे के बचे हुए हिस्सों — जैसे ठूंठ, पत्तियां और भूसी — से आसानी से किण्वन योग्य (fermentable) शुगर निकाली जा सकेगी। इस शुगर का उपयोग बायोफ्यूल और अन्य जैव-उत्पाद बनाने में किया जा सकता है।
🔬 कैसे काम करती है यह तकनीक?
इस प्रक्रिया में वैज्ञानिकों ने पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड और अमोनियम सल्फाइट का एक मिश्रण इस्तेमाल किया है, जिससे बिना किसी पारंपरिक रासायनिक रिकवरी प्रक्रिया के, ठोस पौधों की रेशेदार संरचना को आसानी से शक्कर में बदला जा सकता है। खास बात यह है कि यह प्रक्रिया कम तापमान पर की जाती है, जिससे ऊर्जा की खपत भी घटती है।
💰 लागत में भारी कटौती: सिर्फ 28 सेंट प्रति पाउंड!
शोधकर्ताओं के अनुसार, इस नई तकनीक से प्राप्त शक्कर की लागत मात्र 28 सेंट प्रति पाउंड आती है, जो मौजूदा समय में उद्योगों द्वारा आयात की जाने वाली सबसे सस्ती शक्कर की कीमत के बराबर है। इससे जैविक ईंधन उद्योग को सस्ती कच्ची सामग्री मिल सकेगी और आयात पर निर्भरता कम होगी।
🌱 कोई अपशिष्ट नहीं, बचे हुए हिस्से बनेंगे खाद
इस प्रक्रिया की एक और बड़ी खासियत यह है कि इसमें जो उप-उत्पाद (byproduct) बनता है, उसका उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सकता है। यानी यह तकनीक शून्य अपशिष्ट (zero waste) प्रणाली पर आधारित है और पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है। इससे कृषि क्षेत्र में एक सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा मिलेगा।
🤝 कौन हैं इस रिसर्च के भागीदार?
इस परियोजना में WSU के साथ-साथ USDA (अमेरिका का कृषि विभाग), यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट, और नेशनल रिन्युएबल एनर्जी लैब (NREL) जैसे संस्थानों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। टीम अब इस तकनीक को पायलट स्तर पर परीक्षण के लिए तैयार कर रही है।
⚡ अमेरिका के ऊर्जा विभाग का समर्थन
इस प्रोजेक्ट को यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी का समर्थन प्राप्त है, जिससे यह उम्मीद की जा रही है कि आने वाले वर्षों में यह तकनीक व्यावसायिक स्तर पर लागू की जा सकेगी और सस्ता, टिकाऊ बायोफ्यूल उत्पादन एक हकीकत बन सकेगा।
मक्के की फसल के बाद खेतों में बचने वाले अवशेष अब केवल बेकार नहीं रहेंगे। वैज्ञानिकों की यह खोज भारत जैसे कृषि प्रधान देशों के लिए भी एक प्रेरणा है, जहाँ हर साल बड़ी मात्रा में कृषि अपशिष्ट जलाया जाता है। यदि ऐसी तकनीकें अपनाई जाएं, तो पर्यावरण को राहत, किसानों को आय और देश को ऊर्जा — तीनों एक साथ मिल सकते हैं।
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