शुक्रवार, 16 मई 2025

नई तकनीक

 मक्के के ठूंठ से निकलेगी  चीनी: वैज्ञानिकों ने विकसित की नई तकनीक, खर्च होगा कम और बचेगा पर्यावरण


वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी (WSU) के वैज्ञानिकोंकी बड़ी खोज

कृषि अवशेषों से ऊर्जा प्राप्त करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए, वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी (WSU) के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है जिससे मक्के के पौधे के बचे हुए हिस्सों — जैसे ठूंठ, पत्तियां और भूसी — से आसानी से किण्वन योग्य (fermentable) शुगर निकाली जा सकेगी। इस शुगर का उपयोग बायोफ्यूल और अन्य जैव-उत्पाद बनाने में किया जा सकता है।

🔬 कैसे काम करती है यह तकनीक?

इस प्रक्रिया में वैज्ञानिकों ने पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड और अमोनियम सल्फाइट का एक मिश्रण इस्तेमाल किया है, जिससे बिना किसी पारंपरिक रासायनिक रिकवरी प्रक्रिया के, ठोस पौधों की रेशेदार संरचना को आसानी से शक्कर में बदला जा सकता है। खास बात यह है कि यह प्रक्रिया कम तापमान पर की जाती है, जिससे ऊर्जा की खपत भी घटती है।

💰 लागत में भारी कटौती: सिर्फ 28 सेंट प्रति पाउंड!

शोधकर्ताओं के अनुसार, इस नई तकनीक से प्राप्त शक्कर की लागत मात्र 28 सेंट प्रति पाउंड आती है, जो मौजूदा समय में उद्योगों द्वारा आयात की जाने वाली सबसे सस्ती शक्कर की कीमत के बराबर है। इससे जैविक ईंधन उद्योग को सस्ती कच्ची सामग्री मिल सकेगी और आयात पर निर्भरता कम होगी।

🌱 कोई अपशिष्ट नहीं, बचे हुए हिस्से बनेंगे खाद

इस प्रक्रिया की एक और बड़ी खासियत यह है कि इसमें जो उप-उत्पाद (byproduct) बनता है, उसका उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सकता है। यानी यह तकनीक शून्य अपशिष्ट (zero waste) प्रणाली पर आधारित है और पर्यावरण के लिए भी लाभदायक है। इससे कृषि क्षेत्र में एक सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा मिलेगा।

🤝 कौन हैं इस रिसर्च के भागीदार?

इस परियोजना में WSU के साथ-साथ USDA (अमेरिका का कृषि विभाग), यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट, और नेशनल रिन्युएबल एनर्जी लैब (NREL) जैसे संस्थानों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। टीम अब इस तकनीक को पायलट स्तर पर परीक्षण के लिए तैयार कर रही है।

अमेरिका के ऊर्जा विभाग का समर्थन

इस प्रोजेक्ट को यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी का समर्थन प्राप्त है, जिससे यह उम्मीद की जा रही है कि आने वाले वर्षों में यह तकनीक व्यावसायिक स्तर पर लागू की जा सकेगी और सस्ता, टिकाऊ बायोफ्यूल उत्पादन एक हकीकत बन सकेगा।

मक्के की फसल के बाद खेतों में बचने वाले अवशेष अब केवल बेकार नहीं रहेंगे। वैज्ञानिकों की यह खोज भारत जैसे कृषि प्रधान देशों के लिए भी एक प्रेरणा है, जहाँ हर साल बड़ी मात्रा में कृषि अपशिष्ट जलाया जाता है। यदि ऐसी तकनीकें अपनाई जाएं, तो पर्यावरण को राहतकिसानों को आय और देश को ऊर्जा — तीनों एक साथ मिल सकते हैं।

अमेरिका की नई तकनीक (Corn Stover Processing)

विशेषताविवरण
कच्चा मालमक्के की भूसी, पत्ते, डंठल (agricultural waste)
उपयोग की जाने वाली तकनीकपोटैशियम हाइड्रॉक्साइड + अमोनियम सल्फाइट से ट्रीटमेंट
औसत लागत (प्रति पाउंड)23–₹25 (लगभग 28 सेंट)
ऊर्जा की खपतकम – हल्का तापमान, सरल प्रक्रिया
उप-उत्पादजैविक खाद
पर्यावरण प्रभावशून्य अपशिष्ट, रासायनिक रिसाव नहीं, खेतों का दोबारा पोषण
बचत की संभावनालागत कम, अपशिष्ट से मूल्यवर्धन

भारत को पारंपरिक शक्कर उत्पादन से हटकर सस्टेनेबल और किफायती विकल्पों की ओर देखना चाहिए। अमेरिका की नई तकनीक भारत जैसे देश में स्वच्छ ऊर्जा, ग्रामीण रोजगार और टिकाऊ कृषि के नए द्वार खोल सकती है।

✅ भारत को क्यों अपनानी चाहिए यह नई तकनीक?

  1. गन्ने पर निर्भरता घटेगी — भारत में जल संकट और गन्ने की अत्यधिक सिंचाई से समस्या है।

  2. कृषि अपशिष्ट का उपयोग — हर साल टनों ठूंठ और पत्तियां जलाई जाती हैं, जिससे प्रदूषण होता है।

  3. कम लागत में बायोफ्यूल/शक्कर उत्पादन — इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा।

  4. पर्यावरण सुरक्षा और टिकाऊ खेती — खाद का उत्पादन खेतों को पोषण देगा।

रिपोर्ट: शोध डेस्क

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

‘Capgras Delusion’ ?

    मानव मस्तिष्क की अनदेखी दुनिया:     एक विशेष श्रृंखला-2 Lucknow [ Report By- Jyotirmay yadav ]   "मानव में विकृत मस्तिष्क बीमारियों...